‘जय कुतिया महारानी मां’ : UP का अनोखा मंदिर, जहाँ हर मन्नत होती है पूरी!

कभी आपने किसी मंदिर के बाहर ये बोर्ड देखा है कि जय कुतिया महारानी मां। पहली बार सुनते ही माथा ठनकता है, पर यहीं तो बुंदेलखंड की मिट्टी का हुनर है। यहां इंसान ही नहीं, पशु पक्षी तक से रिश्ता जोड़ लिया जाता है। झांसी जिले के मऊरानीपुर तहसील के दो गांव रेवन और ककवारा की सीमा पर सड़क किनारे बने इस छोटे से चबूतरे पर बैठी काली कुतिया की मूर्ति को लोग कुतिया महारानी मां कह कर पुकारते हैं। और यकीन मानिए, जो वहां पहुंच जाता है, कुछ न कुछ बदल कर लौटता है। आज हम इसी अनोखे देवालय की कहानी, लोक मान्यता, और मेरी अपनी ऑन ग्राउंड फीलिंग के साथ आपको एक छोटी सी आध्यात्मिक यात्रा पर ले चल रहे हैं।

कहानी जो गांव गांव में फुसफुसाई जाती है

बुजुर्ग बताते हैं, कभी एक कुतिया सालों तक इन्हीं गांवों में डेरा डाल कर रही। जहां शादी ब्याह, भोज भंडारा, हवन पूजन, बुलवा सब हो, वह सबसे पहले हाजिर। किसी का नुक़सान नहीं, उल्टा पहरेदारी, बच्चों संग खेल, रात में गलियों की रखवाली। कहते हैं एक दिन भूख प्यास से उसका देहांत हो गया, तो लोगों के दिल भर आए। फिर शुरू हुई वही देशी संवेदना जो गांव को गांव बनाती है। चबूतरा बना, मूर्ति स्थापित हुई, और नारे गूंजने लगे जय कुतिया महारानी मां।

अब आप कहेंगे, यह तो बस भावुक किस्सा है। हां, है भी। पर भारत की आध्यात्मिकता का दिल इसी भाव में धड़कता है। यहां देवत्व सिर्फ देह में नहीं, देह से आगे करुणा में बसता है।

मंदिर का लुक और फील, फोटो खींचते बनता है

मंदिर बहुत भव्य नहीं, बल्कि देसी टच वाला। सड़क किनारे ईंट पत्थर का चबूतरा, ऊपर छोटा सा मंडप, जिसके भीतर काली रंग की कुतिया की मूर्ति, माथे पर सिंदूर और गले में हार फूल। बोर्ड पर मोटे अक्षरों में लिखा दिखता है जय कुतिया महारानी मां। बगल में एक नन्हा सा धूपदान, नारियल की छिलकी, और चढ़ावे में बिस्किट के पैकेट भी दिख जाएंगे। कोई बच्चों को प्रसाद में टॉफ़ी देता है, तो कोई महारानी के नाम पर गुड़ और दूध चढ़ा कर जाता है।

दिन के उजाले में यहां गांव की औरतें पल्लू सम्हालते हुए माथा टेकती दिखेंगी, शाम को खेत से लौटते लड़के बाइक रोक कर घंटा बजा देते हैं। फोटो क्लिक करने का मन तो आपका भी करेगा, पर ध्यान रहे, आस पास के लोगों से एक बार अनुमति जरूर पूछ लें। गांव का अपना शउर होता है, शहर वाली जल्दबाजी यहां थोड़ी धीमी चलती है।

क्या सच में मनोकामना पूरी होती है

अब ये प्रश्न तो हर भक्त के मन में आता है। मुझे वहां के श्यामबाबू ने हंस कर कहा, भैया, यहां जरूरियां पूरी होती हैं, लालच नहीं। ये लाइन मुझे झकझोर गई। उनकी बात का मतलब साफ था। खेत में पानी लग जाए, मवेशी स्वस्थ रहें, बेटी की पढ़ाई ठीक चले, घर में शांति रहे, ऐसी दुआएं यहां मांगी जाती हैं। लाखों की लॉटरी, करोड़ों की डील, और Insta रील पर रातों रात वायरल वाले टोटके नहीं।

मेरी निजी राय भी यही है कि ऐसे स्थान मन को ground करते हैं। चमत्कार अगर होता है, तो वह आपकी सोच और कर्म में दिखाई देता है। किसी जगह पर बार बार कृतज्ञता जताना ही mind को रीसेट कर देता है। और बुंदेलखंड के लोग तो वैसे भी कहते हैं, दुआ लगे तो दूरी नहीं रहती।

यह मंदिर क्यों अलग महसूस होता है

भारत में कई अनोखे मंदिर हैं, जहां चूहे, सांप, पहाड़, पेड़ सब पूजित हैं। पर कुतिया महारानी मां की बात अलग है क्योंकि यहां devotion की भाषा बहुत सरल है। कोई भारी भरकम पुराण कथा नहीं, कोई कठिन व्रत विधान नहीं। बस एक सीधी सी लगन कि जो हमारे साथ रहा, हम उसके साथ रहें। यही reason है कि यह जगह WhatsApp स्टेटस से लेकर Google Discover तक बार बार लोगों को खींच लेती है।

देसी हास परिहास भी साथ चलता है

गांव के चौराहे पर एक अंकल ने मुझे चुटकी लेते हुए कहा, बेटा, यहां selfie अच्छी आती है, पर ध्यान रहे कि महारानी के साथ dog filter मत लगा देना। सब हंस पड़े। यही तो charm है इस जगह का। श्रद्धा और मुस्कान, दोनों साथ चलती हैं।

कैसे पहुंचें, क्या ले जाएं

लोकेशन झांसी जिला, मऊरानीपुर तहसील का बॉर्डर इलाका, रेवन और ककवारा के बीच लिंक रोड। झांसी शहर से मऊरानीपुर की ओर चलते हुए लोकल लोगों से पूछ लें, दो बार में रास्ता मिल जाएगा। निजी वाहन सबसे आसान, पर शेयर ऑटो और लोकल बस भी पड़ाव तक पहुंचा देती है। बरसात के दिनों में कीचड़ ज्यादा होता है, तो जूते सैंडल सोच समझ कर पहनें।

चढ़ावे में फूल माला, दूध, गुड़, बिस्किट, या फिर बस folded hands। कुत्ता कुल्फी नहीं खाता, कृपया fancy चीजें कम रखें। कूड़ा कचरा साथ ले जाएं। यह छोटी सी जगह है, सफाई अपने हाथ में रखेंगे तो माहौल परिवार जैसा रहेगा।

त्योहारों में रौनक, आज के शुभ मुहूर्त की बात

नवरात्र, दीपावली, सावन, और गांव का वार्षिक मेले का समय यहां सबसे ज्यादा चहल पहल वाला होता है। वैसे भी आज 14 सितंबर 2025 को जितिया व्रत जैसे शुभ दिन पड़ रहे हैं, ऐसे दिनों में लोग विशेष पूजन के लिए मंदिरों की तरफ ज्यादा निकलते हैं। राहुकाल वगैरह देख कर निकलना हो तो आज शाम का समय सावधानी वाला माना गया है, बाकी पूरे दिन श्रद्धापूर्वक दर्शन किए जा सकते हैं। ऐसे पर्व ही तो हमें एक साथ जोड़ते हैं, और यूनिक मंदिरों का महत्व और बढ़ जाता है।

मेरी टिप्स जो काम आएंगी

  • सुबह नौ से ग्यारह बजे या शाम पांच के बाद जाएं। धूप कम होगी, फोटो सौम्य आएंगे।
  • स्थानीय भाषा में दो तीन शब्द सीख लें, जैसे राम राम भैया, परनाम दिदी। अजनबी से अपनापा यहीं से शुरू होता है।
  • बच्चों को साथ ले जा रहे हैं तो उन्हें समझाएं कि मूरत के पास जोर शोर ना करें, धीरे से घंटा बजाएं।
  • यदि आप कंटेंट क्रिएटर हैं, तो गांव वालों के चेहरे क्लोजअप में तभी लें जब वे राज़ी हों। भरोसा सबसे बड़ा देवता है।

लोककथा बनाम इतिहास, संवेदना बनाम शास्त्र

कुछ लोग पूछते हैं कि क्या शास्त्र में कुतिया की पूजा का उल्लेख है। ईमानदारी से कहूं, यह जगह लोक आस्था की मिसाल है, न कि किसी canonical ग्रंथ की footnote। लेकिन क्या हर आस्था को footnote चाहिए। यहां पूजा के साथ साथ एक सामाजिक संदेश भी है, कि गांव का कोई भी प्राणी भूख से न मरे। यह संदेश जितना प्रैक्टिकल है, उतना ही आध्यात्मिक।

अक्सर शहरों में spirituality जब expensive रिट्रीट और imported essential oils में बदल जाती है, तब बुंदेलखंड जैसे इलाकों की जमीन से जुड़ी सरल आस्था याद दिलाती है कि devotion का असली स्वाद दाल रोटी सा सादा ही अच्छा लगता है।

कुत्ता, इंसान का दोस्त और देवता का दूत

भारतीय मिथक में कुत्ते का संदर्भ यमराज के द्वारपाल से लेकर भैरव के साथी तक मिलता है। बौद्ध कथाओं में भी करुणा के प्रसंगों में कुत्तों का उल्लेख है। गांव ने इन सबको अपने ढंग से बुना और एक मूर्त रूप दे दिया। यह मंदिर उसी बुनावट का outcome है।

जब आप वहां जाएंगे, तो शायद आपको अपने पालतू शेरू की आंखें याद आएं, या उस गली के कुत्ते की पूंछ, जो रोज बस स्टैंड तक छोड़ने आता है। यही connection इस मंदिर को खास बनाता है।

सोशल मीडिया और Discover की रील लाइफ

अब जमाना Discover और Reels का है। छोटे छोटे वीडियो, स्लाइड शो, और फोटो स्टोरीज इस मंदिर को बार बार सुर्खियों में ले आती हैं। कारण simple है, कंट्रास्ट। लोग वैभवशाली शिखरों, संगमरमर के गर्भगृहों की आदत डाल चुके हैं। ऐसे में एक साधारण चबूतरा, देसी रंग, और कुतिया महारानी मां का बोर्ड देखते ही curiosity ट्रिगर होती है। CTR अपने आप बढ़ता है, शेयरिंग बढ़ जाती है, और लोग कमेंट में अपने गांव की कहानियां लिखने लगते हैं।

मैं तो कहूंगा, अगर आप क्रिएटर हैं तो एक sincere, human centric स्टोरी बनाइए। ओवर द टॉप नरेशन से बचिए, गांव वालों की आवाज में temple का परिचय दीजिए, और अंत में सफाई और पशु प्रेम का मैसेज जोड़ दीजिए। भरोसा रखिए, यह कंटेंट लंबे समय तक evergreen रहेगा।

क्या यह मंदिर पर्यटन बनाम आस्था की बहस में फँसेगा

हर विशिष्ट जगह के साथ यही दुविधा है। ज्यादा भीड़, ज्यादा प्लास्टिक, ज्यादा शोर, और धीरे धीरे sacredness कम होना। समाधान भी गांव के पास है। स्थानीय समिति अगर चबूतरे की मरम्मत, कूड़ेदान, पीने का पानी, और basic शौच व्यवस्था जैसी चीजों पर थोड़ा ध्यान दे दे, तो छोटे सुधार बहुत दूर तक असर करेंगे। बाहर से आने वालों की भी जिम्मेदारी है कि वे इसे picnic spot न समझें, यह एक पूजा स्थल है।

एक निजी पल जिसने मुझे बदल दिया

मैंने पहली बार वहां जाकर बिस्किट की छोटी सी पुड़िया चढ़ाई। साथ बैठे बुज़ुर्ग ने इतने प्यार से कहा, धन रहे बेटा, मन रहे। यह आशीष बड़े मंदिरों के बड़े पुजारियों के लड्डुओं से भी भारी लगा। वापसी में रास्ते पर चलते एक असली कुत्ते ने मेरी तरफ देखा, पूंछ हिलाई, और दूसरे ही पल वह सड़क छोड़ कर खेत की पगडंडी पकड़ गया। लगा जैसे महारानी ने इशारा किया, चलो, तुम अपनी राह, मैं अपनी राह।

कब जाएं, क्या पढ़ें, क्या सोचें

जाने का कोई एक मुहूर्त नहीं, पर त्योहारी मौसम सर्वोत्तम। अगर आप आज जैसे शुभ दिनों में निकलें, तो ध्यान रखें कि भीड़ हो सकती है। पांच दस मिनट शांत बैठें, आंखें बंद करें, और बस इतना कहें, मां, घर में सुख शांति रहे। मनोकामना पूरी होने का अर्थ भी यही है, कि घर का मन और काम सध जाएं।

और हां, लौटते वक्त गांव की किराने की दुकान से देसी गजक, चूरन, या खुरासानी लड्डू खरीद लें। बुंदेलखंड का स्वाद भी प्रसाद जैसा ही है, सीधा और सच्चा।

समापन, पर कहानी जारी

जय कुतिया महारानी मां आज एक बोर्ड भर नहीं, एक विचार है। यह हमें याद दिलाती है कि आस्था का बड़ा हिस्सा कृतज्ञता में छुपा है। किसी ने आपकी रखवाली की, आपको हंसाया, आपके साथ रहा, तो उसके नाम का एक दीपक जलाना ही तो पूजा है। यही कारण है कि इस मंदिर की चर्चा होते ही लोग उत्सुक होते हैं, पढ़ते हैं, सेव करते हैं, और कभी ना कभी वहां जाना चाह लेते हैं।

तो अगली बार जब झांसी की तरफ निकलें, फोर्ट की दीवारें और रानी लक्ष्मीबाई के किस्सों के साथ साथ, इस छोटे से चबूतरे को भी अपनी यात्रा सूची में जोड़िए। हो सकता है आपकी सबसे बड़ी मन्नत, यानी मन की शांति, यहीं पूरी हो जाए। जय कुतिया महारानी मां।

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